तनै नहीं आपा चिन्हा रे,
तनै नहीं आपा चिन्हा रे,
मूर्ख जन्म भूल में खोया,
ये क्या कीन्हा रे !!
इस काया का गर्व ना करना,
एक दिन इसको छोड़के चलना !
चलत वक़्त लगेगी पल ना,
कदे नहीं तनै सुकर्म कीन्हा रे !!
सतगुरु किया ना शरण में आया,
कुल कुट्म्भ में रहा भरमाया !
खा खा के तनै पोखी काया,
कदै तुने नहीं सत्संग कीन्हा रे !!
स्वार्थ में रहा लिपटाया,
झूठी बाज़ी में रहा उलझाया !
गयी जवानी बुढ़ापा आया,
देख दुखों नें तेरै आया पसीना रे !!
व्याधि नै फिर घेरा लाया,
आंख फूट्गी मुडगी काया !
देख दुखों को फिर घबराया,
घरड घरड तेरा बोले सीना रे !!
सतगुरु ताराचंद कहें, कँवर समझ ले,
प्रेम प्रीत सतगुरु चारणा धरले !
नित राधास्वामी नाम को भज ले,
नहीं पड़े बार-बार मरना जीना रे !!
तनै नहीं आपा चिन्हा रे,
तनै नहीं आपा चिन्हा रे,
मूर्ख जन्म भूल में खोया,
ये क्या कीन्हा रे !!